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जैन धर्म सामान्य ज्ञान साथ में पीडीऍफ़ फाइल Jain Dharm

जैन धर्म सामान्य ज्ञान सभी परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैl UPSC, PCS, SSC, Railway And All Competition Exam

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‘जैन’ उन्हें कहते हैं, जो ‘जिन’ के अनुयायी हों। ‘जिन’ शब्द बना है ‘जि’ धातु से। ‘जि’ यानी जीतना। ‘जिन’ अर्थात् जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया हो, वे ‘जिन’ कहलाते है।

जैन धर्म सामान्य ज्ञान

1. ऋषभदेव जैन धर्म के पहले तीर्थंक और संस्थापक थे। जैन धर्म मे 24 तीर्थंकरों को माना जाता है। जिन्हें इस धर्म में भगवान के समान माना जाता है।

2. पार्श्वनाथ का जन्म आज से लगभग 3 हजार वर्ष पूर्व कृष्ण एकादशी के दिन वाराणसी में हुआ था। पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे।

3. पार्श्वनाथ के पिता का नाम अश्वसेन था और इनकी माता का नाम वामा थी। इनके पिता वाराणासी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा थे।

4. पार्श्वनाथ ने 30 वर्ष की आयु में घर त्याग दिया और जैनेश्वरी दीक्षा ली थी पार्श्वनाथ ब्रह्मचारी अविवाहित थे।

5. पार्श्वनाथ ने काशी में 83 दिन तक कठोर तपस्या किया जिसके बाद उन्हें 84वें दिन ज्ञान प्राप्त हुआ था।

6. पार्श्वनाथ ने चतुर्विध संघ की स्थापना की, जिसमे मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका होते हैl 

7. केवल ज्ञान के पश्चात तीर्थंकर पार्शवनाथ ने जैन धर्म के पाँच मुख्य व्रत – सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी थी।

8. जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों भगवान महावीर हुए। महावीर का जन्म 540 ई० पु० में हुआ था। वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था।

9. महावीर 30 वर्ष की आयु में अपने बड़े भाई नंदी वर्धन से आज्ञा लेकर संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। महावीर के माता पिता की मृत्यु हो चुकी थी।

10. इनकी माता का नाम ‘त्रिशला देवी’ और पिता का नाम ‘सिद्धार्थ’ था। इनके पिता राजा सिद्धार्थ ज्ञातृक कुल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छिवी राजा चेटक की बहन थीं।

11. बचपन में महावीर का नाम ‘वर्धमान’ था, लेकिन बाल्यकाल से ही यह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण ‘महावीर’ कहलाए। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें ‘जीतेंद्र’ भी कहा जाता है।

12. कलिंग नरेश की कन्या ‘यशोदा’ से महावीर का विवाह हुआ। महावीर के पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था।

13. महावीर स्वामी के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न सिंह था। इनके यक्ष का नाम ‘ब्रह्मशांति’ और यक्षिणी का नाम ‘सिद्धायिका देवी’ था।

14. दीक्षा प्राप्ति के बाद 12 वर्ष और 6.5 महीने तक कठोर तप करने के बाद वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे ‘साल वृक्ष’ के नीचे भगवान महावीर को ‘कैवल्य ज्ञान’ की प्राप्ति हुई थी।

15. ज्ञान’ की प्राप्ति के अवधि में भगवान ने तप, संयम और साम्यभाव की विलक्षण साधना की. इसी समय से महावीर जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य), निर्ग्रंध (बंधनहीन) कहलाए जाने लगे।

16. महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत यानी अर्धमाग्धी में दिया। प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की बेटी चंपा थी। महावीर के पहले अनुयायी उनके दामाद जामिल बनेl 

17. भगवन महावीर का जन्मस्थली कुंडलपुर/कुण्डग्राम वर्तमान में बिहार के नालंदा ज़िले में स्थित है।

18. जैन ग्रन्थों के अनुसार केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान महावीर ने उपदेश दिया। महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में बांटा था। जिनमें प्रथम इंद्रभूति थे।

19. आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गंधर्व था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा। महावीर के मृत्यु के बाद जैन धर्म का प्रथम थेरा या मुख्य उपदेशक हुआ।

20. जैन धर्म के त्रिरत्न हैं- सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण। त्रिरत्न के अनुशीलन में निम्न पांच महाव्रतों का पालन अनिवार्य है – अहिंसा, सत्य वचन, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।

21. पहली जैन सभा के बाद जैन धर्म दो भागों में विभाजित हो गया – श्वेतांबर जो सफेद कपड़े पहनते हैं और दिगंबर जो नग्नावस्था में रहते हैं।

22. स्थुलभद्र के शिष्य स्वेताम्बर और भद्रबाहु के शिष्य दिगम्बर कहलाया। जैन धर्म में ईश्वर नहीं आत्मा की मान्यता है।

23. महावीर पुनर्जन्म और कर्मवाद में विश्वास रखते थे। जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया।

24. जैन धर्म को मानने वाले राजा थे- उदायिन, वंदराजा, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, राजा अमोघवर्ष, चंदेल शासक। मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था।

25. पहल जैन सभा पाटलीपुत्र में 322 ई० पु० में हुआ और दूसरी जैन सभा 512 में वल्लभी गुजरात में हुई। मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से हैl

26. जैन तीर्थक के जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्प शुत्र में है। जैन तीर्थंकरों में संस्कृत का अच्छा विद्वान नयनचंद्र था।

27. मौर्य काल में मथुरा जैन धर्म का प्रशिद्ध केंद्र था। मल्लराजा सृस्तिपाल के राजप्रसाद में महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था।

28. जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास कल्पसूत्र से मिलता है। जैनधर्म में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल नाम के छ: द्रव्य माने गए हैं।

29. जैन धर्म का आधारभूत बिंदु अहिंसा है। जैन धर्म में श्रावक और मुनि दोनों के लिए पाँच व्रत बताए गए है। तीर्थंकर आदि महापुरुष जिनका पालन करते है, वह महाव्रत कहलाते हैl 

30. इन पांच व्रत में महत्वपूर्ण व्रत अहिंसा को माना गया है अहिंसा -किसी भी जीव को मन, वचन, काय से पीड़ा नहीं पहुँचाना। किसी जीव के प्राणों का घात नहीं करना।

31. जैन धर्म के नौ पदार्थ कहे गए हैं। जैन ग्रंथों के अनुसार जीव और अजीव, यह दो मुख्य पदार्थ हैं। आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य, पाप अजीव द्रव्य के भेद हैं।

32. अनेकान्त का अर्थ है- किसी भी विचार या वस्तु को अलग अलग दष्टिकोण से देखना, समझना, परखना और सम्यक भेद द्धारा सर्व हितकारी विचार या वस्तु को मानना ही अंनेकात है ।

33. स्यादवाद का अर्थ है- विभिन्न अपेक्षाओं से वस्तुगत अनेक धर्मों का प्रतिपादन।

34. 72 साल में महावीर की मृत्यु 468 ई. पू. में बिहार राज्य के पावापुरी में हुई थी।

35. महावीर ने जो आचार-संहिता बनाई वह निम्न प्रकार है 1. किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना 2. किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना 3. मिथ्या भाषण न करना 4. आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना 5. वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना।

36. जैन धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि उनका धर्म ‘अनादि’ और सनातन है।

37. जैन धर्म के 24 तीर्थकरों के नाम – 1. ॠषभनाथ तीर्थंकर 2. अजितनाथ 3. सम्भवनाथ 4. अभिनन्दननाथ 5. सुमतिनाथ 6. पद्मप्रभ 7. सुपार्श्वनाथ 8. चन्द्रप्रभ 9. पुष्पदन्त 10. शीतलनाथ 11. श्रेयांसनाथ 12. वासुपूज्य 13. विमलनाथ 14. अनन्तनाथ 15. धर्मनाथ 16. शान्तिनाथ 17. कुन्थुनाथ 18. अरनाथ 19. मल्लिनाथ 20. मुनिसुब्रनाथ 21. नमिनाथ 22. नेमिनाथ तीर्थंकर 23. पार्श्वनाथ तीर्थंकर 24. वर्धमान महावीर

38. समस्त आगम ग्रंथों को चार भागों मैं बाँटा गया है- 1. प्रथमानुयोग 2. करनानुयोग 3. चरर्नानुयोग 4. द्रव्यानुयोग।

39. जैन धर्म की दिगम्बर शाखा में तीन शाखाएँ हैं 1. मंदिरमार्गी 2. मूर्तिपूजक 3. तेरापंथी

40. श्वेताम्बर में शाखाओं की संख्या दो है 1. मंदिरमार्गी 2. स्थानकवासी

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